धर्म का मर्म

साप्ताहिक कॉलम :

अद्वैत वेदांत में मृत्यु को तीन कोणों से देखा गया है । पूरे सकल शरीर की मृत्य, सूक्ष्म शरीर की मृत्य और कोई मौत नहीं।
सब जानते हैं कि मौत के बाद शरीर का वर्तमान स्वरूप हमेशा के लिए खत्म हो जाता है और वापस अपने मूल रूप वेदांतिक व्याख्या अनुसार मूल तत्वों में बदल जाता है जो बाद में राख, मिट्टी, पौधे, कीड़े का रूप ले लेते हैं। वेदांत स्थूल और सूक्ष्म शरीर के बीच की पहचान बताता है जो जीवन और मृत्यु की एकदम अलग परिप्रेक्ष में व्याख्या करता है। हम ऐसा भी मानते हैं कि पुनर्जन्म होता है। तो एक शरीर की मौत के बाद भी कुछ बचा रहता है जो नए शरीर में स्थापित हो जाता है। यह पुराना शरीर नहीं हो सकता, जोकि विघटित हो गया बल्कि यह सूक्ष्म शरीर है, जिसके पास इंद्रियों की शक्तियां (खुद इंद्रियां नहीं बल्कि उनकी सूक्ष्म शक्तियां)हैं, मस्तिष्क (भाव, बुद्धि, स्मृति और विचार), काम करने वाले अंगों की शक्तियां (उदाहरण के लिए बोलने की क्षमता,समझने या चलने की क्षमता) और शारीरिक कार्य करने की शक्तियां ( उदाहरण के लिए श्वसन,प्रसार और पाचन)।
जीवन और मृत्यु, की समय समय पर भारतीय मनीषियों ने भिन्न भिन्न व्याख्या की। आधुनिक काल की बात करे तो “अमृत नाम अनंत” रचना के जरिए हिन्दी कवि और सफलतम प्रशासनिक अधिकारियों में से एक मध्यप्रदेश के मनोज श्रीवास्तव ने यह कह कर कि ” देवताओं को भी मृत्यु का डर था।” एक नए दृष्टिकोण को उद्धृत किया है। आम धारणा के विपरीत, जो आदि और अनंत को अमर मानती है। श्रीवास्तव जी का यह विचार भक्ति के साथ ज्ञान और तार्किकता को भी प्रधानता देता है। क्योंकि अमृत की चाह वही करेगा जिसे मृत्यु का भय होगा। और इस प्रकार परंपरागत लकीर से इतर यह अवधारणा एक नए मंथन की ओर प्रेरित करती है।
इनका लेखन आधुनिक प्रचलित मुहावरों से बाहर ही नही जाता बल्कि स्थापित अवधारणों की गहरी परतों को भी बखूबी खंगालता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *